दिल से दिल तक

सितम्बर 30, 2007

हौसलों को न मेरे ललकरो

Filed under: ग़ज़ल-दिल से दिल तक — Devi Nangrani @ 2:14 पूर्वाह्न

ग़ज़ल:3

 

घर से तन्हा जो आप निकलेंगे
हादसे अपने साथ ले लेंगे.
हौसलों को न मेरे ललकारो
आँधियों को भी पस्त कर देंगे.
हर तरफ़ हादसों का है जमघट
मौत के घाट कब वो उतरेंगे.
उनपे पत्थर जो फेंकें अपने ही
क्यों न शीशे यकीं के टूटेंगे.
होगा जब साफ आईना दिल का
लोग तब खुद को जान पायेंगे.
जो मुकम्मल हो आशियाँ दिल का
फिर तो हम दर-ब-दर ना भटकेंगे.
रेत पर घर बने है रिश्तों के
तेज़ झोंकों से वो तो बिखरेंगे.
तब कालेजा फटेगा आदम का
ख़ून इन्सानियत का देखेंगे.
है ख़यालों में खलबली देवी
इक नया गीत रोज़ लिखेंगे. ३०१

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