दिल से दिल तक

अक्टूबर 11, 2007

मुर्झाये याद के है सुमन

Filed under: ग़ज़ल-दिल से दिल तक — Devi Nangrani @ 9:43 अपराह्न

गज़लः१७
उजड़ा हुआ है मेरा चमन, या मिरे ख़ुदा.
मुर्झाये याद के है सुमन, या मिरे ख़ुदा.
जलता है आग में ये बदन, या मिरे खुदा
ओढ़े बिना ही अब तो कफन, या मिरे ख़ुदा.
कोई गया जहान से तो आ गया कोई
होता है यूं भी जनम-मरन, या मिरे ख़ुदा.
मैंने भी ले लिया है वो, जो कुछ मिला मुझे
देने के सारे सीखे चलन, या मिरे ख़ुदा.
अपने वतन से दूर मिरा रो रहा है दिल
अटका हुआ उसी में है मन, या मिरे ख़ुदा.
मिट्टी मिले जो देश की तो प्राण मैं तजूं
दिल में यही लगी है लगन, या मिरे ख़ुदा.
‘देवी’ है दरिया आग का दिल में मेरे रवां
बर्दाशत कर रही हूं जलन, या मिरे ख़ुदा.१२७

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