दिल से दिल तक

अक्टूबर 11, 2007

आमद आमद है फिर घटाओं की

Filed under: ग़ज़ल-दिल से दिल तक — Devi Nangrani @ 9:45 अपराह्न

गज़लः १८
आमद आमद है फिर घटाओं की
अब ज़रूरत है कुछ हवाओं की.
लोग निकले वे सुरख़ूरू होकर
सर पे जिनके दुआ है माओं की.
रात दिन शहर में भटकते हैं
खो गयी राह अब है गाओं की.
डर से पीले हुए सभी पत्ते
आहटें जब सुनी खिज़ाओं की.
बेगुनाही तो मेरी साबित है
फिर सज़ाएं है किन खताओं की.
कहके देवी मुझे पुकारा था
गूँज अब तक है उन सदाओं की.१२८

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